Saturday, June 13, 2009

Sar Zamin e Yaas Urdu Poem By Sahir Lidhianvi in Hindi





सरज़मीन यास



जीने सेदल बीज़ार हे

हर सानस खाक आज़ार हे



कतनी हज़ीं है ज़नदगी

अनदोह गीं है ज़नदगी



वह बज़म अहबाब वतन

वह हम नोएान सख़न



आते हैं जस दम याद अब

करते हैं दिल नाशाद अब



गज़री हवी रनगीनयां

खवी हवी दलचसपयां



पहरों रलाती हैं मझे

अकसर सताती हैं मझे



वह ज़मज़े वह चहचे

वह रोह अफ़ज़ा क़हक़हे



जब दिल को मौत आती हे

यों बे हसी छाई न थी



कालज की रनगीं वादयां

वह दलनशीं आबादयां



वह नाज़नीनान वतन

ज़हरह जबीनान वतन



जिन मींसे खाक रनगीं क़बा

आतश नफ़स आतश नवा



करके महबत आशना

रनग अक़ीदत आशना



मीरे दल नाकाम को

ख़ों गशत आलाम को



दाग़ जदाई दे गी

सारी ख़दाई ले गी



उन साातों की याद मीं

उन राहतों की याद मीं



मग़मोम सा रहता हों मीं

घाम की कसक सहता हों मीं



सनता हों जब अहबाब से

क़से ग़म एाम के



बीताब हो जाता हों मीं

आहों में खो जाता हों मीं



फर वह अज़ीज़ व अक़रबा

जो तोड़ कर अहद वफ़ा



अहबाब से मनह मोड़ कर

दनया से रशतह जोड़ कर



हद अफ़क़ से इस तरफ़

रनग शफ़क़ से उस तरफ़



खाक वाद ख़ामोश की

खाक अालम बे होश की



गहरायों मीं सौ गे

तारीकयों में खो गे



उन का तसोर नागहां

लीता है दिल मीं चटकयां



और ख़ों रलाता है मझे

बे कुल बनाता है मझे



वह गां की हमजोलयां

मफ़लोक दहक़ां ज़ादयां



जो दसत फ़रत यास से

और योरशाफ़लास से



असमत लटा कर रह गीं

ख़ोद को गनवा कर रह गीं



ग़मगींजवानी बन गीं

रसवा कहानी बन गीं



उन से कभी गलयों में अब

होता हों मींदो चार जब



नज़रीं झका लीता हों मीं

ख़ोद को छपा लीता होंमीं



कतनी हज़ीं है ज़नदगी

अनदोह गीं है ज़नदगी

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